अयोध्या का सद्भावना मंदिर..........
बीते 7 मार्च 2010 को ‘‘अयोध्या की आवाज’’ एवं विश्व युवा सद्भावना परिषद के बैनर तले साझी विरासत पखवारा के समापन समारोह का आयोजन सरयू कुंज मंदिर में किया गया। इसमें वक्ताओं ने बड़े ही जोरदार शब्दो में आवाज उठाया कि अब इस मंदिर का नाम बदल कर सदभाव मंदिर कर दिया जाये क्योंकि अयोध्या में साम्प्रदायिक व छुआ छूत उन्मूलन के लिए यहाँ पर तमाम कार्यक्रम हो चुके हैं। इस मंदिर से हिन्दू मुसलमान बौद्ध, ईसाई सबका लगाव बढ़ चुका है। यहाँ पर वर्ण और जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है।
अयोध्या के दुराही कुँआ में स्थित सरयू कुंज मंदिर अन्य मठ मन्दिरों से अलग पहचान रखता है। पिछले लगभग 15 साल पूर्व हमारे मन और मस्तिष्क में कई दिनों तक एक ही सवाल गूँजता रहता थ कि ईश्वर को हम जगन्नाथ भी कहते हैं। वे सिर्फ हिन्दुओ के ही नहीं अपितु मुसलमान,सिक्ख, बौद्ध जैन, ईसाई सबके साथ हैं। इसके बावजूद मठ मन्दिरों में धर्म मजहब,वर्ण और जाति के आधार पर भेद क्यो किया जाता है। मैने इसका उत्तर ढूँढ़ निकाला कि भेदभाव इन्सान अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए करता है ईश्वर और धर्म को तो वह हथकण्डे के रूप में इस्तेमाल करता है। मैने तभी से सारे इन्सानों के लिए अपने मंदिर का दरवाजा खोल दिया।
सरयू कुंज में विगत चार वर्षों से साल मे एकबार सर्वधर्म और जाति सहभोज कराया जाता है। इस में हिन्दू,मुस्लिम, ईसाई बौ(, सवर्ण दलित सैकड़ों की संख्या में एक साथ बैठक भोजन करते हैं। इसमें महिलायें भी शामिल होती है। इस मंदिर के विशाल कक्ष एवं प्रांगण में साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए छुआ छूत उन्मूलन के लिए आधा दर्जन से अधिक सेमिनार व गोष्ठियां आयोजित हो चुकी हैं। 20अगस्त 2005, 6 दिसम्बर 05, 1जून 06, 24 सितम्बर 06, 27 अक्टूबर 06, 8 अप्रैल 07, 7 मार्च 2010 में शान्ति सद्भाव एवं मानव एकता के कार्यक्रम हो चुके हैं।
सरयू कुंज मंदिर में विगत 15 वर्षो पूर्व से वर्ण व्यवस्था के आधार पर जो अस्पृश्य माने जाते हैं उन्हें पुजारी और रसोइया रखे है। इनमें एक बौद्ध भिक्षु हैं जो दलित परिवार में पैदा हुए हैं। जापानी बौद्ध भिक्खु से-की-गुच्ची को तीन वर्षों तक इस मंदिर ने रहने के लिए ठौर दिया। वे यहाँ रहकर साधना करते थे। से-की-गुच्ची के यहँ ठौर देने के कारण अयोध्या के कट्टरपंथियों ने मेरा खासा विरोध किया। उन लोगों के दबाव में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक फैजाबाद कार्यालय से मेरे पास नोटिस पहुँची। इसके बावजूद मैं भिक्खु को रहने के लिए अड़ गया। प्रशासन को अपनी नोटिस वापस लेनी पड़ी।
अभी तक देश के तमाम नाचीचीन हस्तियाँ आकर शान्ति सद्भाव एवं मानव एकता के लिए सरयू कुंज मंदिर में बैठके कर चुके हैं। इनमें एडमिरल विष्णु भागवत पूर्व नौ सेना अध्यक्ष,प्रो. रामपुनियानी इन्दिरा गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित, पूर्व आई0जी0 एस.आर.दारापुरी अर्जक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुनाथ सिंह यादव प्रमुख है। इस मंदिर में कारगिल, गुजरात आदि प्रान्तों के तमाम मुस्लिम धर्म के अनुयायी रात्रि विश्राम कर चुके हैं। कई मुस्लिम छात्र भी यहाँ रहकर शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं। ०६ दिसम्बर 92 को विनोबा जी की मानसपुत्री सुश्री निर्मलादेश पाण्डेय यही ठहरी हुई थी। उनके साथ भूदान यज्ञ के दर्जनों कार्यकत्र्ता थे।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिर अयोध्या के हनुमानगढ़ी एवं विवादित रामजन्मभूमि में जब दलित पुजारी रखने की माँग उठी थी उन दिनों अभियान का मुख्य केन्द्र सरयू कुञ्ज मंदिर ही था। भक्ति आन्दोलन मंच का यहाँ कार्यालय भी था। तुलसी उद्यान अयोध्या में एक होर्डिंग लगायी गयी थी जिसमें शूद्रो के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग था। उसके विरुद्ध इसी मंदिर को केन्द्र बनाकर संर्घष किया गया था। अन्त में प्रशासन को होर्डिंग काली स्याही से पुतवाना पड़ा था। सरयू कुञ्ज मंदिर लगभग ७० साल पुराना है। इसमें राम जानकी मंदिर और हनुमान जी के विग्रह स्थापित है। इस मंदिर से बाराबंकी ,अम्बेडकरनगर विहार के जिले के गाँवो के लोग जुड़े हुए हैं। यह पूर्णतः आकाशवृत्ति पर आधारित है। मैग्सेसे पुरस्कारलब्ध संदीप पाण्डेय पिछले तीन चार वर्षों से इसे सर्वधर्म केन्द्र के रूप में विकसित करने की सोच रहे हैं। उनकी इच्छा है कि यहाँ संदर्भ केन्द्र भी बने जहाँ हर धर्म और मजहब का ग्रन्थों सहित साम्प्रदायिक सद्भाव एवं मानव एकता पर आधारित पुस्तकें यहाँ सहजता से लोगों को उपलब्ध हो सके। संदीपकी यह अच्छा वास्तव में अयोध्या की साझी विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। उससे अयोध्या के ही नहीं अपितु भारत के गंगा जमुनी तहजीब की मजबूत मिलेगी। वे चाहते हैं कि सरयू कुञ्ज मंदिर को पुनुरुधार कर ऐसा कक्ष निर्माण हो जिसमें अलग-अलग धर्म और मजहब के लोग अपने-अपने तरीके से पूजा-पाठ इबादत एवं साधना कर सके। सभी के रहने की भी व्यवस्था है। इस मंदिर से अन्य लोग भी प्रेरणा ग्रहण करें यही अपेक्षा है।
अयोध्या के दुराही कुँआ में स्थित सरयू कुंज मंदिर अन्य मठ मन्दिरों से अलग पहचान रखता है। पिछले लगभग 15 साल पूर्व हमारे मन और मस्तिष्क में कई दिनों तक एक ही सवाल गूँजता रहता थ कि ईश्वर को हम जगन्नाथ भी कहते हैं। वे सिर्फ हिन्दुओ के ही नहीं अपितु मुसलमान,सिक्ख, बौद्ध जैन, ईसाई सबके साथ हैं। इसके बावजूद मठ मन्दिरों में धर्म मजहब,वर्ण और जाति के आधार पर भेद क्यो किया जाता है। मैने इसका उत्तर ढूँढ़ निकाला कि भेदभाव इन्सान अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए करता है ईश्वर और धर्म को तो वह हथकण्डे के रूप में इस्तेमाल करता है। मैने तभी से सारे इन्सानों के लिए अपने मंदिर का दरवाजा खोल दिया।
सरयू कुंज में विगत चार वर्षों से साल मे एकबार सर्वधर्म और जाति सहभोज कराया जाता है। इस में हिन्दू,मुस्लिम, ईसाई बौ(, सवर्ण दलित सैकड़ों की संख्या में एक साथ बैठक भोजन करते हैं। इसमें महिलायें भी शामिल होती है। इस मंदिर के विशाल कक्ष एवं प्रांगण में साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए छुआ छूत उन्मूलन के लिए आधा दर्जन से अधिक सेमिनार व गोष्ठियां आयोजित हो चुकी हैं। 20अगस्त 2005, 6 दिसम्बर 05, 1जून 06, 24 सितम्बर 06, 27 अक्टूबर 06, 8 अप्रैल 07, 7 मार्च 2010 में शान्ति सद्भाव एवं मानव एकता के कार्यक्रम हो चुके हैं।
सरयू कुंज मंदिर में विगत 15 वर्षो पूर्व से वर्ण व्यवस्था के आधार पर जो अस्पृश्य माने जाते हैं उन्हें पुजारी और रसोइया रखे है। इनमें एक बौद्ध भिक्षु हैं जो दलित परिवार में पैदा हुए हैं। जापानी बौद्ध भिक्खु से-की-गुच्ची को तीन वर्षों तक इस मंदिर ने रहने के लिए ठौर दिया। वे यहाँ रहकर साधना करते थे। से-की-गुच्ची के यहँ ठौर देने के कारण अयोध्या के कट्टरपंथियों ने मेरा खासा विरोध किया। उन लोगों के दबाव में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक फैजाबाद कार्यालय से मेरे पास नोटिस पहुँची। इसके बावजूद मैं भिक्खु को रहने के लिए अड़ गया। प्रशासन को अपनी नोटिस वापस लेनी पड़ी।
अभी तक देश के तमाम नाचीचीन हस्तियाँ आकर शान्ति सद्भाव एवं मानव एकता के लिए सरयू कुंज मंदिर में बैठके कर चुके हैं। इनमें एडमिरल विष्णु भागवत पूर्व नौ सेना अध्यक्ष,प्रो. रामपुनियानी इन्दिरा गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित, पूर्व आई0जी0 एस.आर.दारापुरी अर्जक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुनाथ सिंह यादव प्रमुख है। इस मंदिर में कारगिल, गुजरात आदि प्रान्तों के तमाम मुस्लिम धर्म के अनुयायी रात्रि विश्राम कर चुके हैं। कई मुस्लिम छात्र भी यहाँ रहकर शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं। ०६ दिसम्बर 92 को विनोबा जी की मानसपुत्री सुश्री निर्मलादेश पाण्डेय यही ठहरी हुई थी। उनके साथ भूदान यज्ञ के दर्जनों कार्यकत्र्ता थे।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध मंदिर अयोध्या के हनुमानगढ़ी एवं विवादित रामजन्मभूमि में जब दलित पुजारी रखने की माँग उठी थी उन दिनों अभियान का मुख्य केन्द्र सरयू कुञ्ज मंदिर ही था। भक्ति आन्दोलन मंच का यहाँ कार्यालय भी था। तुलसी उद्यान अयोध्या में एक होर्डिंग लगायी गयी थी जिसमें शूद्रो के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग था। उसके विरुद्ध इसी मंदिर को केन्द्र बनाकर संर्घष किया गया था। अन्त में प्रशासन को होर्डिंग काली स्याही से पुतवाना पड़ा था। सरयू कुञ्ज मंदिर लगभग ७० साल पुराना है। इसमें राम जानकी मंदिर और हनुमान जी के विग्रह स्थापित है। इस मंदिर से बाराबंकी ,अम्बेडकरनगर विहार के जिले के गाँवो के लोग जुड़े हुए हैं। यह पूर्णतः आकाशवृत्ति पर आधारित है। मैग्सेसे पुरस्कारलब्ध संदीप पाण्डेय पिछले तीन चार वर्षों से इसे सर्वधर्म केन्द्र के रूप में विकसित करने की सोच रहे हैं। उनकी इच्छा है कि यहाँ संदर्भ केन्द्र भी बने जहाँ हर धर्म और मजहब का ग्रन्थों सहित साम्प्रदायिक सद्भाव एवं मानव एकता पर आधारित पुस्तकें यहाँ सहजता से लोगों को उपलब्ध हो सके। संदीपकी यह अच्छा वास्तव में अयोध्या की साझी विरासत का प्रतिनिधित्व करता है। उससे अयोध्या के ही नहीं अपितु भारत के गंगा जमुनी तहजीब की मजबूत मिलेगी। वे चाहते हैं कि सरयू कुञ्ज मंदिर को पुनुरुधार कर ऐसा कक्ष निर्माण हो जिसमें अलग-अलग धर्म और मजहब के लोग अपने-अपने तरीके से पूजा-पाठ इबादत एवं साधना कर सके। सभी के रहने की भी व्यवस्था है। इस मंदिर से अन्य लोग भी प्रेरणा ग्रहण करें यही अपेक्षा है।
युगलकिशोर शरण शाष्त्री, मो0नं0 9451730269
(लेखक: सरयू कुज मंदिर के सर्वहकार व महंथ है)