18 जुलाई 2010

अपनों से अपनी बात.................

अपनों से अपनी बात

एतद् देष प्रसूतस्य शकासाद अग्रजन्मनः
स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेंन पृथ्वियां सर्व मानवाः

भावार्थ - जो लोग भारत में पैदा हुए तथा यहाँ के ब्राहमणों ने अपने अपने चरित्र से पृथ्वी के समस्त मानव प्राणी को शिक्षा दिया।

परोक्त श्लोक को तकरीबन 25 वर्षोँ पूर्व एक सद्ग्रन्थ में पढ़ा तो मेरा मन बाग-बाग हो उठा, मन मयूर नृत्य करने लगा। मुझे इस बात का गर्व था कि हमारे पूर्वज दुनिया में सबसे अच्छे थे। वे चरित्रवान थे,मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण थे। ज्यादा समय नहीं बीता,मैं निराश होने लगा मेरा मनका ढ़ह गया। अब विश्वास ही नहीं होता कि हम बहुत अच्छे थे। यदि हम बड़े मानवीय मूल्यों से युक्त थे, इन्सानियत पसंद थे तो आज क्या हो गया है। सन 1948 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियाँ रख दी गयी, 6 दिसम्बर 1992 में इस मस्जिद को नारा लगाते हुए शरेशाम तोड़ दी गयी, इन्दिरा गाँधी की हत्या के पश्चात सिक्खो का संहार, गुजरात में गोधरा काण्ड के पश्चात मुस्लिमों का संहार तथा महिलाओं के गर्भ में पल रहे बच्चे को धारदार हथियार से पेट चीरकर पटकर मार देना, उड़ीसा के कंधमाल में दलित ईसाईयों का संहार तथा उनके घर झोपड़ियों को आग के हवाले कर देना आदि घटनायें क्या यही दार्शाता है कि हम बड़े कुलीन है,हम अच्छे हैं,चरित्रवान है सभ्य है?

इस देश में फासिस्टवादियों की संख्या 20 प्रतिशत से भी कम है। आज भी हम अपने कर्तव्यों से पूरी दुनिया को शिक्षा देने में सक्षम हैं परन्तु हमारी अच्छाइयों को कट्टरपंथियों ने गहरे धुंध में ढकेल दिया है। दुर्योधन द्वारा भरी सभा में द्रोपदी को चीरहरण किया जा रहा था, उनको नग्न करने का प्रयास चल रहा था। उस समय भीष्म पितामह मौन थे। युधिश्ठिर धर्मराज कहे जाते थे इन्होंने भी प्रतिकार नहीं किया। आज हम उन्हीं लोगों जैसे धर्मधुरन्धर हो गये हैं। साम्प्रदायिक ताकतें नंगा नृत्य करती रहती हैं, मानवीय मूल्यों का गला घोंटती रहती हैं।
युगलकिशोर शरण शास्त्री
महंथ, रामजानकी मंदिर
सरयू कुञ्ज, अयोध्या