1 मई 2010

सहमें से है कंधमाल के दलित व आदिवासी

सहमें से है कंधमाल के दलित व आदिवासी
युगलकिशोर शरण शाष्त्री

हरे भरे ऊँचे पे पौधे पहाड़ियाँ तथा प्रकृति के अन्य तमाम सम्पदाओं से युक्त कंधमाल के दलित एवं आदिवासी ईसाई आज भी अनहोनी घटना को लेकर सहमा सा है। पिछले 2008 में हुए भयानक संहार उन्हें बारम्बार स्मर होता रहता है प्राकृतिक सौन्दर्य उन्हें भा नहीं रहा है। हालांकि पुर्नवास की तैयारियाँ उड़ीसा सरकार एवं कुछ संगठनों द्वारा जारी है।

उड़ीसा के जनपद कंधमाल की जनता जो लोग हिन्दू कट्टरपंथियों के बहकावे में आकर दलित व आदिवासी ईसाईयों को नुकसान पहुँचाया वे लोक अपने किये पर पछतावा कर रहे हैं। उन्हें अब महसूस होने लगा है कि हमें इस्तेमाल किया गया। फिर भी जो भुक्तभोगी है उन्हें भरोसा नहीं है। दूरियाँ अभी कम नहीं हुई हैं। इस जिले में अभी तक 300 ईसाई परिवार ऐसे है जो अपने घर को वापस नहीं आये हैं और जो लोग अमीर थे वे षहर पकड़ चुके हैं। उन्हें यह भय सता रहा है कि वापस होने पर उन्हें मार दिया जायेगा।

कंधमाल जनपद में कुल 2500 गाँव है। इनमें कैम्पों में 25 हजार आदिवासी थे। 500 गाँव प्रभावित थे और इनके 200 गाँवो पूरे तरह से दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था। चालीस हजार ईसाई को बेघर होना पड़ा था।

23 अगस्त 2008 में स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या का बहाना बनाकर आर. एस. एस. के अनुशांगिक संगठनों ने दलित आदिवासी ईसाईयों का कत्लेआम करना उनके घरों को जलाना, बलात्कार करना चर्चों को जलाना, जैसे तमाम क्रूर काम प्रारम्भ कर दिया था। यह क्रम पूरा एक माह तक चला। 56 लोगों को जिन्दा जला दिया गया था। घरों में स्थित सोने, चांदी के जेवरों को लूट लिया गया था। उन दिनों गाँवो के तमाम ऐसे हिन्दू थे उन्हें भी कट्टरपंथियों ने मारा पीटा।एक व्यक्ति जो बचाने में लगा था उनके दोनों आँखों में लकड़ी घुसेड़ दी गयी थी। उपद्रवकारियों ने जिन-जिन लोगों को जिन्दा जलाया था उसे मिट्टी में तोप दिया था।

कंधमाल में ईसाईयों का संहार सुनियोजित था। फादर जोसेफ बताते हैं कि यह घटना एकाएक नहीं हुई। इसके लिए संघ परिवार ने गाँव -गाँव में लोगों से मिलकर कई वर्षोपूर्व ईसाईयों के विरूद्ध नफरत फैलाना आरम्भ कर दिया था। कंधमाल के आदिवासी और दलितों में भी कट्टरपंथियों ने अपनी भारी पैठ बना ली थी। हम लोग समझ नहीं पाये थे। स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या तो सिर्फ बहाना था उनकी हत्या की जिम्मेदारी माओवादियों ने स्वयं ले लिया था। माओवादियों का आरोप था कि लक्ष्मणानन्द धर्म के काम नहीं कर रहे थे। वे लोगों में नफरत फैला रहे थे, गरीबों की जमीन पर कब्जा कर रहे थे। फिलहाल कंधमाल के प्रशासन ने उत्पीड़ित ईसाईयों के उनके जमीन पर पुनः कब्जा दिलाने का काम प्रारम्भ कर दिया है। उड़ीसा की सरकार ने जिनके घर पूरी तरह जला दिये गये थे उन्हें 50000 रूपये तथा जिनके अधजले थे उन्हें 20000 देने की घोषणा किया है। उन घोशणाओं को अमली जामा पहनाने का कार्य प्रारम्भ है। इन पैसों को कई खण्डों में दिया जा रहा है। कैथोलिक तथा प्रोस्टेड चर्च पुर्नवास में सहयोग कर रहे हैं। कैथोलिक रिलीफ सेन्टर भी आर्थिक सहायता के साथ साथ शांति स्थापना में लगा है।

कंधमाल जनपद में ईसाईयों की संख्या 17 प्रतिशत के आस-पास है। सन 1968 से आदिवासी और दलितों में जो हिन्दू समाज में हजारों वर्षों से उपेक्षित रहे हैं ने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया है। धर्म परिवर्तन करने वालों में आदिवासी से ज्यादा संख्या दलितों की है। आर0एस0एस0 के लोग यह दुःप्रचार कर रहे है की ईसाई मिशनरी प्रलोभन देकर हिन्दुओं को ईसाई बना रहे हैं। सीमनवाडी के हिन्दू युवक अन्तर्यामी इस बात की पुष्टि भी करते हैं, परन्तु कैथोलिक रिलीफ सेन्टर के निदेशक फादर जोसेफ कहते हैं कि मुझ पर यह झूठा आरोप कट्टरपंथियों द्वारा लगाया जा रहा है। आर0एस0एस0 परिवार द्वारा ईसाईयों को धमकी भी दी जा रही है कि तुम फिर से हिन्दू धर्म ग्रहण कर लो अन्यथा हम लोग तुम्हें जान से मार देंगे। इसके बावजूद भी कोई ईसाई धर्म छोड़ने को तैयार नहीं है। फादर कहते हैं कि प्रलोभन देकर यदि हम लोग ईसाई बनाये होते तो लोग जान देने को क्यों तैयार हो जाते। वे कहते हैं कि पिछले वर्षों में 1000 से अधिक ईसाईयों का सिर मुड़वाकर हिन्दू बनाया गया परन्तु 99 प्रतिशत लोग पुनः चर्च आने लगे हैं वे पुनः ईसाई बन गये हैं।

पिछले 28 जनवरी 2010 को मैं और अपने साथी विनोद आनन्द को लेकर शान्ति यात्रा के क्रम में कंधमाल जनपद पहुँच था। सीमनवाड़ी के कैथोलिक चर्च में पड़ाव डाला था। वहाँ से मैने पाँच गाँवो मे पहुंचकर लोगों से सम्पर्क किया। इनमें हिन्दू और इसाई दोनों थे। गाँव वालों को एकत्र करके मैने आधा-आधा घण्टा प्रत्येक गाँवो के लोगों को शान्ति का सन्देश दिया। लोगों को अपने किये का पछतावा भी था। कई लोग तो कहने लगे कि यहाँ तो धर्म गुरू कभी कभी आते हैं परन्तु दूसरे धर्म की बुराई करके चले जाते हैं। आप पहले सन्त है जो हम लोगों को अच्छी बात बता रहे है। गाँव वालों में तमाम का कहना था कि सन् 2008 में जो घटनायें हुई थी वह राजनीति से प्रेरित थी। इन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए बुरा काम करवाया। हम लोग अब सतर्क है इस प्रकार की घटना अब नहीं होने देंगे। गाँवो में षान्ति का संदेष देने के लिए मुझे फादर मैथियास ने अपनी गाड़ी स्वयं ड्राइविंग करके पहुँचाया था। मेरे साथ में फादर जयन्त, अन्र्तयामी भी साथ में थे। सम्पर्क के क्रम में इन लोगों के साथ सीमनवाड़ी, कीरोवाड़ी, दतौरी,आदि गाँवों के सैकड़ो पुरुष,महिलाओं तथा गाँव के प्रमुखों से मिला। इनमें अन्र्तयामी हिन्दू युवक जो उड़ीसा और हिन्दी दोनों जानता है ने हमारी शान्ति के उपदेशों को ग्रामीण जनता को उड़िया भाषा में अनुवाद कर लोगों को समझाया।

इन्दिरागाँधी की हत्या के पश्चात सिक्खों का संहार, सन् 1992 में अयोध्या से बाबरी मस्जिद तोड़े जाने एवं उसके बाद वहाँ के 200 मुस्लिमों के घर को आग के हवाले करने तथा 16 मुस्लिमों को जिन्दा जलाने,गुजरात के मुस्लिम संहार जिसमें 2हजार से अधिक मुस्लिमों तथा उसके औरतों को जिन्दा जलाने, युवतियों के साथ बलात्कार करने, एवं कंधमाल के आदिवासी एवं दलित ईसाईयों कासंहार की घटनाओं की सदैव निन्दा होनी चाहिए।

कंधमाल की घटना में धर्म को सिर्फ हथकण्डे के रूप में इस्तेमाल कियागया। असल में वह दलित आदिवासी, पर हमला था। वह घटना असमानता और बढ़ाने के लिए थी। घटना ने प्रकृति प्रदत्त बेहद सुन्दरता पर कालिख पोत दिया है। वहाँ के लोग बाहर से देखने में जैसे हो परन्तु वे भीतर से बहुत सुन्दर है। वह निष्कपट है उनमें सादगी है परन्तु आर.एस.एस. परिवार ने सबको धूल में मिला दिया।
वहाँ के लोग आज भी मुहब्बत को जरिया बन सकते है। इस पवित्र कार्य का अंजाम मानव मूल्यों के प्रति, कबीर, दादू, रैदास के विचारों के प्रति एवं प्रभु ईशू के करूणा के प्रति समर्पित मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं सन्त ही दे सकते हैं। वहाँ आज ऐसे लोगों की महती आवश्यकता है।

लेखक: युगुल किशोर शरण शाष्त्री
संयोजक

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